चंद्रशेखर जोशी, संवाद न्यूज एजेंसी, चंपावत
Published by: रेनू सकलानी
Updated Fri, 03 Jun 2022 12:28 PM IST
मेरे पास बस 137 साल पुरानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का चुनाव निशान था, बस यही मेरी अकेली पूंजी थी। सब कुछ एकला चलो… की तर्ज पर मुझे ही करना था। यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की चुनावी सभा की व्यवस्था भी मुझे ही करनी पड़ी। ये तो बस एक बानगी है।
चुनाव प्रचार शुरू होने से मतदान निपटने तक कांग्रेस के 90 प्रतिशत वरिष्ठ कार्यकर्ता नदारद थे। इसके लिए सबने कई बहाने बनाए। खुद उन्हें मैदान से हटाने के लिए प्रलोभन दिए गए लेकिन वह मैदान में डटीं रहीं। यह दर्द बयां किया हैं उपचुनाव में कांग्रेस की प्रत्याशी निर्मला गहतोड़ी ने जो आठ साल तक जिलाध्यक्ष रहने से लेकर तीन साल तक महिला एवं बाल विकास बोर्ड की अध्यक्ष भी रहीं।
कांग्रेस प्रत्याशी ने कहा कि संगठन से लेकर कई वरिष्ठ और जिम्मेदार नेताओं का अपेक्षित सहयोग नहीं मिला। पार्टी के अधिकतर दिग्गज नेता, यहां तक कि फरवरी में हुए आम चुनाव में टिकट के लिए आवेदन करने वाले कई नेता भी कांग्रेस से अलग हो गए थे। हमारे अधिकतर पदाधिकारी-कार्यकर्ता भाजपा की गोद में बैठ गए थे और बचे कार्यकर्ताओं में से भी 90 प्रतिशत तो जनता के बीच आने से भी कतराते रहे। कांग्रेस ने इस चुनाव को गंभीरता से नहीं लड़ा।
मेरे साथ धोखा हुआ
कई वरिष्ठ नेताओं के मना करने के बाद उन्होंने पार्टी की खातिर इस चुनाव में उतरने पर रजामंदी जताई लेकिन चुनाव में मेरे साथ धोखा हुआ। इसमें अपने घर के लोग भी शामिल थे, इसकी सबसे ज्यादा पीड़ा है। गहतोड़ी ने कहा कि नारी सम्मान के नारों के बीच महिला उम्मीदवार पर हुए हमले पर भी कांग्रेस के बड़े नेताओं ने भाजपा की निंदा नहीं की। कहा कि इन बिंदुओं को पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी तक पहुंचाऊंगी। कांग्रेस प्रत्याशी निर्मला गहतोड़ी ने कहा कि चुनाव के नतीजे पर उन्हें कोई संशय नहीं है लेकिन हार पर भी वे संघर्ष से डिगेंगी नहीं। उनका मुकाबला सीएम से था। लोगों ने विकास की आस में पार्टी लाइन से भी आगे बढ़कर उनका समर्थन किया है।
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डराने-धमकाने के मामले को चुनाव आयोग के सम्मुख उठाएंगे
गहतोड़ी ने कहा कि उनसे कई वोटरों ने कहा कि इस बार नहीं, वर्ष 2027 में वे उन्हें वोट देंगे। उन्होंने कहा कि अगर 2021 में सल्ट में हुए उपचुनाव की तरह स्थानीय संगठन ने साथ दिया होता तो ये मुकाबला एकतरफा नहीं होता। गहतोड़ी ने कहा कि राजनीति में हार क्या होती है, ये तो सीएम को भी पता है। हार ही नहीं, जमानत जब्त होने से भी वे भयभीत नहीं होंगी। उन्हें सबसे बड़ी खुशी पार्टी के वजूद को बचाने की है। चंपावत उपचुनाव में आचार संहिता के उल्लंघन से लेकर कार्यकर्ताओं और एजेंटों को डराने-धमकाने के मामले को पार्टी की राज्य इकाई चुनाव आयोग के समक्ष उठाएगी। फिर भी तर्कपूर्ण कार्रवाई न हुई तो वे आंदोलन करेंगी।
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मेरे पास बस 137 साल पुरानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का चुनाव निशान था, बस यही मेरी अकेली पूंजी थी। सब कुछ एकला चलो… की तर्ज पर मुझे ही करना था। यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की चुनावी सभा की व्यवस्था भी मुझे ही करनी पड़ी। ये तो बस एक बानगी है।
चुनाव प्रचार शुरू होने से मतदान निपटने तक कांग्रेस के 90 प्रतिशत वरिष्ठ कार्यकर्ता नदारद थे। इसके लिए सबने कई बहाने बनाए। खुद उन्हें मैदान से हटाने के लिए प्रलोभन दिए गए लेकिन वह मैदान में डटीं रहीं। यह दर्द बयां किया हैं उपचुनाव में कांग्रेस की प्रत्याशी निर्मला गहतोड़ी ने जो आठ साल तक जिलाध्यक्ष रहने से लेकर तीन साल तक महिला एवं बाल विकास बोर्ड की अध्यक्ष भी रहीं।
कांग्रेस प्रत्याशी ने कहा कि संगठन से लेकर कई वरिष्ठ और जिम्मेदार नेताओं का अपेक्षित सहयोग नहीं मिला। पार्टी के अधिकतर दिग्गज नेता, यहां तक कि फरवरी में हुए आम चुनाव में टिकट के लिए आवेदन करने वाले कई नेता भी कांग्रेस से अलग हो गए थे। हमारे अधिकतर पदाधिकारी-कार्यकर्ता भाजपा की गोद में बैठ गए थे और बचे कार्यकर्ताओं में से भी 90 प्रतिशत तो जनता के बीच आने से भी कतराते रहे। कांग्रेस ने इस चुनाव को गंभीरता से नहीं लड़ा।
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